संदेश

आओ तो सही

 यूं तो नहीं आना था तुमको मगर  अब आ गए हो तो ठहरो तो सही मै खुश था अपनी तन्हाइयों मै  अब तुम भी चुप बैठे हो कुछ बोलो तो सही हर सवाल पे और भी इतराते हो क्यों इतना  जवाब है मेरे पास तुम ज़रा सुनो तो सही मुझसे कब मांगी थी तुमने कोई उम्मीद कब तोड़ दी हसरत तुम्हारी बताओ तो सही तुम जो चुप हो तो कोई राज ही होगा तुम तो समझदार हो बहुत हमें भी समझाओ तो सही ये जो आईना आंखों का लिए फिरते हो तुम इसमें मेरी तस्वीर है मुझे दिखाओ तो सही अब कहां कोई आरज़ू पाले इस दिल में मदहोश होश मे हूं मगर होश कोई दिलाए तो सही।

मैं रात सी ढलती रही

  वो चांद सा बढ़ता रहा मैं रात सी ढलती रही वो हिज़्र का दरिया रहा मैं बेतहाशा बहती रही वो ना दिल में था ना जुबां पे था ना जाने फिर भी मै उसे देख के जीती रही उसे देख के मरती रही वो जो था कभी अब क्यों नहीं और जो अब है वो तब नहीं ये क्या बिसात ए जिंदगी मेरे साथ दगा करती रही कभी हम नहीं कभी तुम नहीं कभी दौर ए वफ़ा नहीं मिली अब किसको किसको दोष दू मै खुद ही सब सहती रही ये तो युंही हुआ जो उसने कहा कल रात मेरे ख्वाब में मुझे नींद भी ना आयी थी और देर तक सोती रही उसका आना जाना था मेरे दिल के मकान में वो बस किरायेदार था मै जिसका घर करती रही उसने कभी जिक्र तो मेरा किया ना था किसीके सामने और मैं थी उसे हर कदम हमराज अपना करती रही   ये भी यकीं है मुझे वो प्यार तो करता बहुत  जो बात उसे बतानी थी वो खुद से ही  कहती रही वो चला गया मुझे छोड़कर और मैं खड़ी तकती रही मैंने कहा रोक लू और खुद  ही ना  कहती रही वो ना आएगा अब बुलाने से इतना तो मुझे पता ही है  फिर आज  दिल से अपने ही मै  आरजू करती रही थे दायरे वफाओं के भी कुछ हद थी मेरे प्यार कि की आज तक मै बैठकर इंतजार करती रही अब हो चली है उम्र भी रहने दो उसका ना

सादगी

  तेरी सादगी ने इस कदर रुसवा किया मुझे इतना बदल गया ये क्या हुआ तुझे मेरे अल्फ़ाज़ जो खानाबदोश है मगर एक दम ठहर गए जब से देखा तुझे ना कोई हर्फ ना जुबां ना लफ्ज़ ही मिले किस तरह आज कागज पे मै लिखूं तुझे इतना मासूम सा एक बच्चा कहां खो गया मुझको बताओ यार अब खोजू कहां तुझे अब मिले हो शुक्रिया मगर इतना तो तय ही है पहले जो मिलते तो कुछ और ही मैं कहता  तुझे क्यूं बेदम सा हो गया वो क्यूं तुम हुए जुदा तुम तो बेरहम हो अब क्या कहूं तुझे ये कसीदे ये फ़िराक़ ए जिन्दगी और एक हम इस जिंदगी ने और क्या तोहफा दिया तुझे इसके सिवा कुछ भी नहीं मदहोश याद हैं देखा जो एक बार तो बहका दिया मुझे

ये ग़ज़ल तुम्हारे नाम की

  ये ग़ज़ल तुम्हारे नाम की मैं गुनगुनाता जाऊंगा मुझे याद तुम ना रहो पर भूल मैं ना पाऊंगा तुम्हे डर है कि मैं भुला ना दू कही छोड़ ना दूं मैं राह में हर मोड़ पे ए जिंदगी खड़ा हुआ मैं पाऊंगा। कभी दोस्तों की भीड़ में तुम अगर गुम रहो जो  तुम ना दोगे साथ तो मैं फिर कहां जाऊंगा यूंही चलते चलते राह में एक रोज़ तुमने कहा तो था तेरा हमनशीं कोई और हैं मैं अब किसे बुलाऊंगा ये मुहब्बतों का जो खेल है इसे जीतकर या हारकर तुम्हें पाना है मेरी जिंदगी और एक दिन तुझे पाऊंगा ना हो हौसला तो क्यों न हो मुझे तुझ पे ये एतबार है जो कल अगर मैं ना रहा तुझे याद बहुत मैं आऊंगा तूने  बनाया था मुझे और अब तू ही मुझे मिटाएगा मैं कहां बाकी रहा जो खुद को मैं सताऊंगा रूठ जाना तेरी भी है मेरी भी है आदत तो क्या कभी यूं न रूठ जाना के मैं बिल्कुल ही टूट जाऊंगा कोई दर्द से दर्द का रिश्ता भी होता है क्या तेरा दर्द जो मुझे मिल जाए तो फिर तुझे बताऊंगा देर करदी बहुत तुमने आने में मेरे रूबरू अब यूं करो की देर तक तुमको जी भर चाहूंगा देखो मेरी नजरों में है ये सब नज़ारे तेरे लिए तू आके जब भी देख ले दिल खोल तुझे द

तुम्हारा जवाब नहीं

 हाथों मे गुलाब नहीं आंखों में शराब नहीं हम तो यूंही फ़िदा है तुम पर तुम्हारा जवाब नहीं। इशारों में कह देते हो हर बात दिल की हमसे  तुम्हारी बात क्या हैं तुम्हारा जवाब नहीं। क्यों छुपाते हों दिल की बातों को हमसे ही तुम मानो तुम कुछ भी मगर इतने भी खराब नहीं रख के भूल जाओगे क्या हमको भी इसी तरह तुम्हारी किताब में दबा हुआ मैं गुलाब नहीं जो महक आती है सांसों में तुम्हारी  भीनी भीनी सी मेरी याद है वो कोई फूल ए गुलाब नहीं देख के भी नज़रें चुराते हो क्यों आखिर हमसे हम तो उलझे सवाल है कोई सीधे जवाब नही तुम्हारे सीने में जो दिल है दस्तखत है उस पर मेरा यकीं  नहीं तो देख लो इरादा कुछ खराब नही कभी बेसबब मेरे सीने पे तू सर को रख के देख तो मैं जिंदा हूं मेरी जिंदगी  मैं कोई  ख़्वाब नही डूब जायेगा चांद फिर टूट कर मेरे जहन में आज रोक लो ये लम्हा यहीं ये इंतिहा है आगाज़ नहीं लो फिर उलझ गए मदहोश उनकी जुल्फों के पेंचो में उलझने कितनी है देखो इनका तो कुछ हिसाब नहीं

किताब की तरह

 वो जो पढ़ लेते है चेहरे को मेरे किताब की तरह मिलते हैं मगर हमसे खुद माहताब की तरह शामिल जो हुआ खून में इश्क़ मेरे शराब की तरह चेहरा नज़र आया मुझे गुलाब की तरह ये तो नहीं इश्क़ ही लिखता हूं मैं हमेशा जब भी लिखता हूं इश्क़ हो जाता हैं सवाब की तरह आईना देख के लगने लगा हैं यूं हमको पसे आईना तुम हो किसी ख़्वाब की तरह रंग कैसे मैं करू अपने चहरे का नियाज़ तुम नजर आओ मुझे शाम ए आफताब की तरह क्या हैं दरमियान तेरे और मेरे इक भरोसे के सिवा जो रखता है तुम्हें छुपाकर हिजाब की तरह ईमान तो हैं जो अक्सर रोक लेता हैं कदमों को मेरे दिल तो मचल जाता है बेईमान की तरह हमसे मिलो बाते करो बैठो कभी साथ में ये क्या हुआ की आए गए हो जाते हो जनाब की तरह अब मदहोशी मदहोश की ना कुछ काम आएगी तुम चढ़ गए हो नजरों में शराब की तरह